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बाल विवाह

बाल विवाह


बिटिया का धर्म विवाह कर दो गंगा! बहुत पुण्य मिलेगा।

दादी की बात को मानकर मेरा बाल विवाह हो गया था।

दस साल बाद गौना हुआ और मैं ससुराल आकर अपने

पति से  मिली। वे सरकारी बाबू थे। 

पति को जैसे मेरे में कोई दिलचस्पी ही न हो। मुझे भी उनसे मिलने की कोई चाहत नहीं थी। मुझे तो बनवारी की बहुत याद आती थी। जब विवाह हुआ तो मैं इसका मतलब नही समझती थी। जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो बनवारी मिला। हम दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे।

लेकिन जब मेरे घर मे मेरे गौने की बात होने लगी तो मैं बहुत रोई कि मुझे ससुराल नहीं जाना। 

सब कहने लगे कैसी छोरी है रे तू मां-बाप का नाक कट वायेगी और मुझे विदा कर दिया।

कुछ दिन बाद सासु माँ ने मुझसे कहा-"बहू पति को वश में करने के लिए औरतों को बहुत जतन करने पड़ते हैं।तुम भी उससे दूर दूर रहती हो। मौका देखकर उससे बात कर उसे अपने पास आने का जतन कर।"

सासु माँ की बात सुनकर मैंने सोचा-चलो एकबार बात करती हूँ

मैंने रमेश जी स  कहा-"आप।मुझसे दूर क्यों रहते हैं  पत्नी हूँ मैं आपकी!"

मैं इस बाल विवाह को नहीं मानता। उन्होंने सपाट सा उत्तर दिया।

"तो मुझे विदा करा के क्यों ले आये?"

वो तो माँ ने खाना पीना छोड़ रखा था इसलिए।

मैं सीमा से प्यार करता हूँ। उसी के साथ अपनी जिंदगी बिताना चाहता हूँ।

 रमेश जी ने कहा।

और मैं, आखिर इसमें मेरी क्या गलती है।

गलती न तुम्हारी है न मेरी गलती इस बाल विवाह प्रथा की है।

मैं भी यही सोच रही थी न गलती उनकी थी न मेरी थी गलती इस प्रथा की थी जिसका खामियाजा चार लोग भुगत रहे हैं।


स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह'


प्रतियोगिता के लिए

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9 Comments

kashish

03-Feb-2023 02:23 PM

very nice

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Abhilasha sahay

16-Dec-2021 04:34 PM

Very beautiful 👌

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Kaushalya Rani

15-Dec-2021 08:11 PM

Nice story mm

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